श्री दादाजी अखारामजी की संक्षिप्त जीवनी
पावन भारत भूमि में राजस्थान की माटी तो प्राचीन काल से ही पूज्यनीय मानी जाती रही है, क्योंकि इस मरुधरा में सर्वाधिक देवस्थान जो ठहरे, चाहे सालासर में श्री बालाजी हों या गोठमागलोद माताजी, मेंहदीपुर बालाजी हों या खाटूश्यामजी या फिर रामदेवरा, रामदेवजी या झोंटरन हरीरामजी, सालासर मोहनदासजी। ये सभी प्रसिद्ध देवस्थान, राजस्थान की गरिमा को बढ़ाते हैं। इसलिए अमूमन ऐसा माना जाता है कि जो कोर्इ भक्तजन सच्चे मन से इन देवस्थानों के दर्शन लाभ ले लेता है, जीवन सफल हो जाता है।
इस आलौकिक धर्मस्थल का नाम है परसनेऊ शुभ धाम राजस्थान के चुरु जिले में बीकानेर-रतनगढ़ रेल मार्ग पर स्थित है। इस धराधाम की महिमा अपरम्पार है क्योंकि यहाँ एक ऐसे सन्त ने जन्म लिया है जिनकी त्याग-तपस्या के प्रतिफल से आज भी उनकी पीढी या पीढियाँ तरती जा रही हैं।
संवत् 1550 में परसनेऊ ग्राम में प्रकाण्ड पण्डित श्री हरजीरामजी के घर में शुभ नक्षत्र में जन्मे इस पलोड वंश दधिची कुल भूषण का जन्म हुआ। किशोर अवस्था से ही आपने अपने तपाबल शक्ति का परिचय देना प्रारंभ कर दिया। लोग इस बाल ब्रह्मचारी के चमत्कारों को प्रणाम करने लगे।
श्री हरजीरामजी ने भी इस तेजस्वी मुखमण्डल वाले सुपुत्र का नाम अक्षय रखा, जो शनै: अखारामजी के नाम में परिवर्तित हो गया। उनकी बहन जिबु वार्इ ने इस भ्रात में बाल्य काल से ही प्रभू भक्ति की धुन लगा दी, दिनभर राम-नाम जपते रहते थे तथा उन्हें एकान्तवास ही प्रिय रहा था। इस मौन तपसी संत को ग्रामवासी गूगीया के नाम से सम्बोधित कर पुकारते थे। मारुती नंदन की शक्ति व भक्ति में डूबे इस भक्त को किसी के कुछ कहने से बेअसर रहे। वे इतने भक्त बन गये कि श्री बालाजी स्वयं उनके वार्तालाप करते थे। वे परसनेऊ से 5-6 किलोमीटर दूर ( नाडीया ) में धुनी रमो थे तथा राम व भक्त हनुमान को रिझाने में मस्त रहते थे। इस संत की शरण में जो जाते थे, बाधा ( संकट ) मुक्त हो जाते थे। सर्पदंश से व्याकुल व्यक्ति उनके पास आकर चिमटे और बभूति की कल्पतरु कलवाणी पाकर नया जीवन प्राप्त कर लेते थे। अंजनीसुत की भक्ति में लीन इस भक्त में एक मनोभाव जागृत हुआ कि इस धोरां-धरती पर एक बालाजी का मन्दिर बनवाऊं, इस ग्राम की माटी के कण-कण में भक्ति अलख जगाऊं।
श्री अखाराम जी की मनोइच्छा को पूर्ण करने के लिए स्वयं बालाजी धरती पर उतर आये और स्वप्न में दर्शन देकर अखाराम जी को आदेश दिया, मैं तुम्हारी भक्ति से इतना प्रसé हूं कि स्वयं तुम्हारे पास आ रहा हूं। फलस्वरूप दड़ीबा गांव के पास आ रहा हूं। बैनाथ में हल जोत रहे एक किसान का हल अपने आप रुक गया, जब किसान ने देखा कि खेत में बालाजी की एक मूर्ति निकली है वो आश्चर्य चकित हो गया तभी वहां एक आकाशवाणी हुर्इ की मुझे बैलगाडी पर बिठाकर उत्तर दिशा की ओर ले चलो जहां यह बैल गाड़ी रुक जावे वहीं मेरा स्थान होगा।क्योंकि मेरा भक्त अखाराम वहां मेरा इन्तजार कर रहा है। इधर अखाराम जी प्रभु के आने की प्रतिक्षा कर रहे थे।
श्री बालाजी की मूर्ति आते देख कर अखाराम जी के नयन झर झर बरसने लगे और अपने आप को धन्य मान कर बालाजी को पाकर फूले नहीं समाये। यह लीला देखकर श्री हरजीसुत अति प्रसéचित रहने लगे। ( हृदय सराहत बचन नहीं आवा। )
पंचमी व पूनम का मेला लगता है, यात्री अपनी मनोकामना पूर्ण करते हुए श्रीफल, लड्डू, पतासा चढ़ाते, जात जडूला लगवाते, यही क्रम चलता रहता था। समाधी ग्रहण करने से पूर्व मारुति नंदन सेवक अखाराम को बोले मेरी बात सुनो जब तक यह पीपल हरा रहेगा तब तक तुम्हारी सिद्धि रहेगी, वरदान स्वरूप दादाजी महाराज को वचन अक्षय शक्ति सिद्धि प्रदान की। सर्प आदि के जहर व भूतपे्रत आदि के प्रभाव से मुक्ति के लिए बभूति व कलवाणी रुपी औषध का वरदान दिया जिस से आज भी वहां भक्तों के दु:ख क्षणभर में कट जाते हैं
लड़ार्इ में, जल में, वन में, जंगल में, जहरीले जानवरों से जब भी तुम विपत्ति में पडोगे, मुझे स्मरण करोगे। मै रक्षा करुंगा।
इतना कहकर शुभ घड़ी व समय निश्चित करके प्राणायाम करते हुए अखाराम राम-राम स्मरण करते हुए प्रभु क धाम पहुंच गये। जिबु बार्इ के भ्रात परम पूज्य बन गये।
परसनेऊ, बण्डवा व छापरगढ़ डूंगरगढ़ में हरजीसुत की कीर्र्ति का बखान करते हैं।
माता का नाम - सुखिया बार्इ
पिता का नाम - हरजी राम जी
भार्इ का नाम - देदा राम
बहन का नाम - जीबु बार्इ
परसनेऊ में एक राजपूत रहते थे जिनका नाम रायसिंह था, वो शिकार खेलते थे और निर्दोष जानवरों की हत्या कर देते थे। एक बार उन्होंने हिरण का शिकार किया, दादाजी को जब पता चला तो वहाँ पहुंचे, जहाँ रायसिंह था, दादाजी ने हिरण के पास पहुंच कर मृत हिरण को जीवित कर दिया। उस दिन के बाद से रायसिंह ने शिकार खेलना छोड़ दिया, और दादाजी का भक्त बन गया।
दादाजी ने अपने जीवन काल में बहुत से भक्वों के दु:खों को निवारण किया है। आज भी उनकी शक्ति से लाखों लोग अपने दु:ख दूर करते हैं।